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Showing posts from 2012

सफ़र

बड़ी दूर निकल आये हम, मंजिल जो दूर थी, वक़्त का साथ भी न रहा "यथार्थ", वो बड़ा कमबख्त जमाना था, तेरा साथ तो नसीब में भी न था, पर तेरी याद़ो से बस एक ही बात थी, मेरी मंजिल मेरी राहें,चाहे जैसी भी रही हो, मेरा सफ़र एक सुहाना था... . मेरा सफ़र एक सुहाना था......

परवाना

बड़ी तल्खी थी ज़माने के अल्फाजो में किसी दिन, जल गया था एक परवाना किसी गैर की आग में, शमां भी बदनसीब थी, जो जलती रही और जलाती रही न जाने कितने परवानो  को, यूँ ही एक परवाना कहीं और उड़ चला, जलती शमां से दूर, बहुत दूर, पूछने पे बोला, ऐ शमां तू ना बुझना अभी, मै आता हूँ  तेरे पास, इस जमाने को जलाने के बाद, इस जमाने को जलाने के बाद ।

समझ

सब कहानी तेरी मै अब समझ गया, तेरी बातो की तह तक मै पहुँच गया, तेरे हर एक इशारे को मै समझ गया, तेरी हर एक कशिश में हू मै खो सा गया, जिंदा है लोग क्यों यहाँ पे, ये भी मै समझ गया, तेरी दुनिया के पहलुओं से मै वाकिफ हो गया, ऐ खुदा तेरी जन्नतों को मै बखूब समझ गया, चलना होगा मुझे फिर से अपनी उसी डगर, ना मंजिल है ना किनारा, ना कोई किश्ती जहाँ, तेरी जन्नत से बेहतर है  मेरी अनजान डगर, क्यूंकि इस 'अनजान' के अंजाम को, मै समझ गया.   
मेरी हर बात जो, तुम्हे है अब बुरी सी लगने लगी, मेरी हर आदतें तुम्हे है अब बुरी सी लगने लगी, वजह है क्या, है जो तुम्हे पता, मुझे बता भी दो, समझ के, नासमझ बनो तो कहते  है  खता, जो भी है, जैसा है, वैसा है हो सकता, न सजा है, न सजा दो, ये भी हमको है पता.

इन्सां

जो किस्मत की किताबों को, कभी हम यूँ ही पढ़ लेते, तो शायद खुद पता होता, की आगे आज क्या होता, यूँ दिल का दर्द कम होता, तो कोई गम नहीं होता, मगर ऐसा कभी होता, तो हम नादान ही रहते, जिसे न दर्द हो दिल में, वो तो इन्सां नहीं  होता I

क्यों

कालचक्र का रथ है आगे, फिर हम सब क्यों है पीछे, क्षितिज हमेशा मेल दिखाता, फिर हम सब क्यों है बंटते, निर्झर सरिता बहती जाती, फिर हम सब क्यों है ठहरे, अरुणिम वेला है मौन तोड़ती, फिर हम सब क्यों है चुप  रहते.

चुप रहता हू

मन की कोरी कल्पनाओ में जी लेता हू मंजिल की परवाह बिना, मै चल पड़ता हू, खुले हुए दिल से, मै सबसे मिल लेता हू, बंद निगाहों से, मै सब कुछ कह देता हू, नाराज न हो जाये कोई, सो चुप रहता हू जानता हू सब कुछ,  फिर भी मै चुप रहता हू.

फुर्सत

कभी फुर्सत में बैठोगे, तो फिर तुम सोच सकते हो, की शायर हु नहीं मै, फिर भी लिखता हु कहा से मै, मै भी फुर्सत में बैठा हूँ  तो मै भी सोच लेता हूँ , यू ही बस आ गए कुछ शब्द, तो उनको जोड़ लेता हूँ सभी शब्दों को जोड़ा हूँ , तो कुछ पाया हूँ, खोया हूँ,, गलत जो बात मै बोलू, तो तुम नाराज़ न होना, तुम्हे सुनकर, ज़माने बाद, मै अच्छे से सोया हूँ.

चलते रहना

शब्दों के संसार का बंधन, जीवन का जंजाल ये बंधन, बंधन का करना है मंथन, मंथर गति में होता मंथन, बंधन तोड़ो, मंथन छोडो, चलो कही, पर, राह न छोडो, आस ना छोडो, साथ ना छोडो, चलो दौड़ कर, थकना मत तुम झुकना मत तुम, रोना मत तुम, मत करना कोई परिवर्तन, चाहे हो समक्ष गोवर्धन, बढ़ते रहना कठिन डगर पर अगन के पथ में जलते रहना पर तुम साथी चलते रहना, जीवन चक्र बढ़ाते रहना, समय चक्र से आगे जाकर, ही तुम रुकना, पर तब तक, ऐ मेरे साथी, चलते रहना, चलते रहना.

शांति

 वासनात्मक  सृजन मेरा वासना से जन्म मेरा मृत्युलोक में है पदार्पण ये भोग रूपी एक दर्पण क्यों करू मै इस वासना की आज फिर अवहेलना ये तो सम्भोग रूपी समाधि की है  चेतना विचलित हो मन विचलित हो तन सब शांत हो जो समाधि ले कलिकाल में अब शांति हो सम्भोग हो या समाधि हो निः शब्द हो कर सब कहे कही शांति हो कही शांति हो.

रंग दे तू मेरा लिबास

रंग दे तू मेरा लिबास, ला रंग दे तू , अब ये लिबास सब रंग मिले, एक रंक मिला प्रासाद के रस में भंग मिला कही मीत मिला, कभी प्रीत मिला जीवन में यही है मिली रीत, इस से अब अपनी बहुत प्रीती इस रीति-प्रीती के बंधन से कही हृदय जला कही रुधिर जला फिर जला हमारा कुंठित मन जल बुझ कर हुआ ये दिव्य प्रकाश इस दिव्य ज्योति में देर न कर अब ला तू, रंग मेरा लिबास ला रंग दे तू मेरा लिबास.