बड़ी तल्खी थी ज़माने के अल्फाजो में किसी दिन,
जल गया था एक परवाना किसी गैर की आग में,
शमां भी बदनसीब थी, जो जलती रही
और जलाती रही न जाने कितने परवानो को,
यूँ ही एक परवाना कहीं और उड़ चला,
जलती शमां से दूर, बहुत दूर,
पूछने पे बोला, ऐ शमां तू ना बुझना अभी,
मै आता हूँ तेरे पास, इस जमाने को जलाने के बाद,
इस जमाने को जलाने के बाद ।
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