ये उल्फत क्यों अभी तक है,
मैं पा लूँ या उसे खो दूँ ,
मैं डरता हूँ , जो खो दूँ मैं उसे ,
तो फ़िर ये कोई हार न हो,
जो पा लूँ , मैं उसे तो फ़िर ,
वो उसकी हार ना हो ,
मैं उस को, इस कदर महसूस करना चाहता हूँ
कि सब कुछ हार कर भी, मैं ये पाना चाहता हूँ
कि वो मेरी रहे मन से, करे फ़िर जो भी उस मन से
मैं तेरे मन से ही, खुद को समझना चाहता हूँ
जरा मैं जान भी तो लूँ,
कि पाना है या खोना है।
मैं पा लूँ या उसे खो दूँ ,
मैं डरता हूँ , जो खो दूँ मैं उसे ,
तो फ़िर ये कोई हार न हो,
जो पा लूँ , मैं उसे तो फ़िर ,
वो उसकी हार ना हो ,
मैं उस को, इस कदर महसूस करना चाहता हूँ
कि सब कुछ हार कर भी, मैं ये पाना चाहता हूँ
कि वो मेरी रहे मन से, करे फ़िर जो भी उस मन से
मैं तेरे मन से ही, खुद को समझना चाहता हूँ
जरा मैं जान भी तो लूँ,
कि पाना है या खोना है।
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