हृदय के भाव का ‘प्रारब्ध’ है,
मेरे प्रेम की पराकाष्ठा,
‘अस्तित्व’ होता ही नहीं,
है प्रेम जब भी जागता।
ये प्रेम बस है जानता,
कि वो बस प्रेम ही है माँगता,
है वो अनवरत, है अमिट,
बन्धन रहित, अहं रहित
ये हृदय मेरा जानता,
प्रेम में हूँ मैं, ये मानता ।
मेरे प्रेम की पराकाष्ठा,
‘अस्तित्व’ होता ही नहीं,
है प्रेम जब भी जागता।
ये प्रेम बस है जानता,
कि वो बस प्रेम ही है माँगता,
है वो अनवरत, है अमिट,
बन्धन रहित, अहं रहित
ये हृदय मेरा जानता,
प्रेम में हूँ मैं, ये मानता ।
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