सच कहूँ, या फिर कुछ झूठ कहूँ,
ख़िदमत में तेरे कुछ ऐसा कहूँ,
सोने को मैं पीतल कह दूँ,
तन मन को मैं क्यूँ ना दर्पण कह दूँ,
तुझसे ना कहूँ अब ज़्यादा सच,
लेकिन मैं कहूँगा कान्हा से,
तू काला तन से है कान्हा,
तेरा मानव, मन से क्यूँ काला रे।
ख़िदमत में तेरे कुछ ऐसा कहूँ,
सोने को मैं पीतल कह दूँ,
तन मन को मैं क्यूँ ना दर्पण कह दूँ,
तुझसे ना कहूँ अब ज़्यादा सच,
लेकिन मैं कहूँगा कान्हा से,
तू काला तन से है कान्हा,
तेरा मानव, मन से क्यूँ काला रे।
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