कुछ खुले-बन्द दरवाज़े हैं, जो अनसुलझे रिश्तों से हैं, जब खुले रहे तब जगा वहम, जब बन्द हुए तब जगा अहम्, तब अनायास ही ज्ञात हुआ, अब मुझको ‘मैं’ प्राप्त हुआ। यूँ नया मेरा अस्तित्व हुआ, खिड़की से मैं था देख रहा, रंगीं शामों की स्याह रात, कभी दूर हुआ कभी पास हुआ, तब जा कर ये एहसास हुआ, अब मुझको ‘मैं’ प्राप्त हुआ।
Hindurdu blog by Animesh on emotions, feelings, experiences, and life to describe love aka truth.