वजह कुछ और है, लिखने बैठा जो ख़त तुझे आज, काँप उठी कलम, स्याह हो गयी आँखें, गीले पन्नों सा पसीज गया दिल, लेकिन, इस बार, वजह कुछ और है। सर्द हवाओं में, तुझे ढूँढता हूँ, तो पाता हूँ, कशिश धुएँ के कश में क़ैद है, गर्माहट बिखर सी गयी है, इन टूटे हुए चाय के कुल्हड़ों में, लेकिन, इस बार, वजह कुछ और है। वो दौर अलग था, ये दौर अलग है, आज भी वही ट्रेन पकड़ता हूँ, दौड़कर, बस वो दौड़ अलग थी, अब दौड़ ये अलग है, हाँफ जाता हूँ अब भी दौड़ कर, लेकिन, इस बार, वजह कुछ और है।
Hindurdu blog by Animesh on emotions, feelings, experiences, and life to describe love aka truth.