अहं का अस्तित्वहीन होना,
धैर्य की समीक्षा करना,
प्रलापों का मौन होना,
सत्य को स्वीकारना,
और प्रेम का होना,
बिलकुल वैसे ही जैसे,
दाह में सिर्फ़ शरीर का जलना,
मन के दावानल का शान्त होना,
और प्रेम की,
भीष्म सी प्रतिज्ञा लेना,
या फिर दधीच सा त्याग,
अन्यथा अभिमन्यु सा बलिदान,
ये प्रेम का भाव है,
ये यही माँगता है, यही चाहता है।
धैर्य की समीक्षा करना,
प्रलापों का मौन होना,
सत्य को स्वीकारना,
और प्रेम का होना,
बिलकुल वैसे ही जैसे,
दाह में सिर्फ़ शरीर का जलना,
मन के दावानल का शान्त होना,
और प्रेम की,
भीष्म सी प्रतिज्ञा लेना,
या फिर दधीच सा त्याग,
अन्यथा अभिमन्यु सा बलिदान,
ये प्रेम का भाव है,
ये यही माँगता है, यही चाहता है।
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