यूँ मौन लिए क्यों रहता है,
बेचैन है फिर क्यों थमता है,
क्यों स्याह हुयी आँखों से,
तू बस क्षितिज को देखा करता है,
ये जीना भी क्या जीना है,
अफ़सोस में रोता रहता है,
रे जाग अभी, तो ज्ञान मिले,
जब ज्ञान मिले तो प्राण मिले,
जो प्राण मिले तो मोक्ष मिले,
चल उठ, अब तुझको,
मुर्दों की बस्ती में अलख जगाना है,
सब ज्ञान बाँट दे उनमें भी,
दे प्राण झोंक, अब उनमें भी,
अब जा तू जल्दी, देर ना कर,
जा अलख जगा, इन मुर्दों में।
बेचैन है फिर क्यों थमता है,
क्यों स्याह हुयी आँखों से,
तू बस क्षितिज को देखा करता है,
ये जीना भी क्या जीना है,
अफ़सोस में रोता रहता है,
रे जाग अभी, तो ज्ञान मिले,
जब ज्ञान मिले तो प्राण मिले,
जो प्राण मिले तो मोक्ष मिले,
चल उठ, अब तुझको,
मुर्दों की बस्ती में अलख जगाना है,
सब ज्ञान बाँट दे उनमें भी,
दे प्राण झोंक, अब उनमें भी,
अब जा तू जल्दी, देर ना कर,
जा अलख जगा, इन मुर्दों में।
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