अघोर के कपाल की कल्पना हूँ,
क्रोध की काली रात हूँ,
दहकती हुई आग हूँ,
कपालिक का त्रिशूल हूँ,
ताण्डव का अस्तित्व हूँ,
बाहर से ही शांत हूँ मैं,
अरे! मसान की राख हूँ मैं।
क्रोध की काली रात हूँ,
दहकती हुई आग हूँ,
कपालिक का त्रिशूल हूँ,
ताण्डव का अस्तित्व हूँ,
बाहर से ही शांत हूँ मैं,
अरे! मसान की राख हूँ मैं।
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