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Showing posts from January, 2012

चुप रहता हू

मन की कोरी कल्पनाओ में जी लेता हू मंजिल की परवाह बिना, मै चल पड़ता हू, खुले हुए दिल से, मै सबसे मिल लेता हू, बंद निगाहों से, मै सब कुछ कह देता हू, नाराज न हो जाये कोई, सो चुप रहता हू जानता हू सब कुछ,  फिर भी मै चुप रहता हू.

फुर्सत

कभी फुर्सत में बैठोगे, तो फिर तुम सोच सकते हो, की शायर हु नहीं मै, फिर भी लिखता हु कहा से मै, मै भी फुर्सत में बैठा हूँ  तो मै भी सोच लेता हूँ , यू ही बस आ गए कुछ शब्द, तो उनको जोड़ लेता हूँ सभी शब्दों को जोड़ा हूँ , तो कुछ पाया हूँ, खोया हूँ,, गलत जो बात मै बोलू, तो तुम नाराज़ न होना, तुम्हे सुनकर, ज़माने बाद, मै अच्छे से सोया हूँ.

चलते रहना

शब्दों के संसार का बंधन, जीवन का जंजाल ये बंधन, बंधन का करना है मंथन, मंथर गति में होता मंथन, बंधन तोड़ो, मंथन छोडो, चलो कही, पर, राह न छोडो, आस ना छोडो, साथ ना छोडो, चलो दौड़ कर, थकना मत तुम झुकना मत तुम, रोना मत तुम, मत करना कोई परिवर्तन, चाहे हो समक्ष गोवर्धन, बढ़ते रहना कठिन डगर पर अगन के पथ में जलते रहना पर तुम साथी चलते रहना, जीवन चक्र बढ़ाते रहना, समय चक्र से आगे जाकर, ही तुम रुकना, पर तब तक, ऐ मेरे साथी, चलते रहना, चलते रहना.

शांति

 वासनात्मक  सृजन मेरा वासना से जन्म मेरा मृत्युलोक में है पदार्पण ये भोग रूपी एक दर्पण क्यों करू मै इस वासना की आज फिर अवहेलना ये तो सम्भोग रूपी समाधि की है  चेतना विचलित हो मन विचलित हो तन सब शांत हो जो समाधि ले कलिकाल में अब शांति हो सम्भोग हो या समाधि हो निः शब्द हो कर सब कहे कही शांति हो कही शांति हो.

रंग दे तू मेरा लिबास

रंग दे तू मेरा लिबास, ला रंग दे तू , अब ये लिबास सब रंग मिले, एक रंक मिला प्रासाद के रस में भंग मिला कही मीत मिला, कभी प्रीत मिला जीवन में यही है मिली रीत, इस से अब अपनी बहुत प्रीती इस रीति-प्रीती के बंधन से कही हृदय जला कही रुधिर जला फिर जला हमारा कुंठित मन जल बुझ कर हुआ ये दिव्य प्रकाश इस दिव्य ज्योति में देर न कर अब ला तू, रंग मेरा लिबास ला रंग दे तू मेरा लिबास.