आज दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर इंतज़ार कर रहे अनिकेत की नज़र सामने के प्लेटफार्म पर पड़ी और यकीन नहीं हुआ आँखों को, उसके सामने रक्षंदा खड़ी है , प्लेटफार्म की सीढ़ियों को चढ़ते- उतरते, हाँफते- दौड़ते वो उस प्लेटफार्म पर गया और रुक गया | पहले उसने रक्षंदा को निहारा और फिर आवाज़ लगायी "रक्षंदा", दोनों ने एक दूसरे को देखा और हँसते हुए बढे, लगा कि गले मिलने जा रहे हों , लेकिन दोनों के कदम ठिठक से गए, रक्षंदा के साथ उसके कुछ दोस्त भी थे, बस हाथ मिलाना , थोड़ी ज्यादा देर तक हाथ मिलाना चलता रहा | वैसे गले मिलना समस्या नहीं है वो भी दिल्ली में, लेकिन अनिकेत छोटे शहर से तो बाहर आ गया , लेकिन छोटा शहर उससे बाहर नहीं गया , फिलहाल समस्या कुछ ही चीज़ों तक सीमित हो चुकी है जैसे कि गले मिलना , बात की शुरुआत करना , ज्यादा करीब बैठना और अनिकेत की ये समस्या भी सिर्फ लड़कियों तक सीमित है | खैर जो भी हो फिलहाल समस्या ये है कि अनिकेत ने रक्षंदा से झूठ बोल दिया है कि उसकी ट्रेन बहुत ज्यादा लेट है और रक्षंदा की 'राजधानी एक्सप्रेस ' के बाद वो ट्रेन आएगी | रक्षंदा जान गयी है कि झूठ बोला गया है, लेकिन उसकी चुप्पी और मुस्कुराहट ने जैसे इस बात को सच मान लिया हो |
प्लेटफार्म पर दोनों अगल-बगल बैठ कर, जिस तरह से चाय पी रहे हैं , देख के लग रहा है जैसे कि इस ठण्ड की शुरुआत में स्कूल-कॉलेज का नया-नया प्यार हुआ हो | अनिकेत को आज कॉलेज का वो दिन याद आ गया, जब वो कॉलेज टूर से लौटते हुए रक्षंदा के कंधे पर सिर रख कर सो गया और जब उठा तो अपने को उसकी गोद में पाया, तब भी लगा था, जैसे नया-नया प्यार हो | आज भी अनिकेत का मन है कि ये वक़्त ऐसे ही थम जाए , रक्षंदा के कंधे पर फिर सिर रखकर एक चैन की गहरी नींद आ जाए | रक्षंदा ट्रेन में बैठ चुकी है और ट्रेन चल दी , लेकिन ये क्या रक्षंदा कोच के दरवाजे पर आँसुओं को छिपाते हुए, हाथों को हवा में हिलाते हुए बाय-बाय कर रही है | बाय -बाय ट्रेन की गति के बढ़ने के साथ और तेज़ होता जा रहा है |
सब कुछ जैसे शून्य में समा गया है, अनिकेत के लिए वक़्त इस बार भी नहीं रुका| अनिकेत से जिंदगी की कई ट्रेनें छूटी हैं, लेकिन इस ट्रेन के छूटने से दिल का दर्द बढ़ गया है , अनिकेत निकल पड़ा है किसी और ट्रेन को पकड़ने | प्लेटफार्म के डस्टबिन में अनिकेत और रक्षंदा के चाय के कप साथ में, एक दूसरे में समाहित से पड़े हुए हैं , ठीक वैसे ही जैसे बरसों से अनिकेत के दिल में रक्षंदा समाहित है | ये समाहित होना भी प्रेम की पराकाष्ठा है |
प्लेटफार्म पर दोनों अगल-बगल बैठ कर, जिस तरह से चाय पी रहे हैं , देख के लग रहा है जैसे कि इस ठण्ड की शुरुआत में स्कूल-कॉलेज का नया-नया प्यार हुआ हो | अनिकेत को आज कॉलेज का वो दिन याद आ गया, जब वो कॉलेज टूर से लौटते हुए रक्षंदा के कंधे पर सिर रख कर सो गया और जब उठा तो अपने को उसकी गोद में पाया, तब भी लगा था, जैसे नया-नया प्यार हो | आज भी अनिकेत का मन है कि ये वक़्त ऐसे ही थम जाए , रक्षंदा के कंधे पर फिर सिर रखकर एक चैन की गहरी नींद आ जाए | रक्षंदा ट्रेन में बैठ चुकी है और ट्रेन चल दी , लेकिन ये क्या रक्षंदा कोच के दरवाजे पर आँसुओं को छिपाते हुए, हाथों को हवा में हिलाते हुए बाय-बाय कर रही है | बाय -बाय ट्रेन की गति के बढ़ने के साथ और तेज़ होता जा रहा है |
सब कुछ जैसे शून्य में समा गया है, अनिकेत के लिए वक़्त इस बार भी नहीं रुका| अनिकेत से जिंदगी की कई ट्रेनें छूटी हैं, लेकिन इस ट्रेन के छूटने से दिल का दर्द बढ़ गया है , अनिकेत निकल पड़ा है किसी और ट्रेन को पकड़ने | प्लेटफार्म के डस्टबिन में अनिकेत और रक्षंदा के चाय के कप साथ में, एक दूसरे में समाहित से पड़े हुए हैं , ठीक वैसे ही जैसे बरसों से अनिकेत के दिल में रक्षंदा समाहित है | ये समाहित होना भी प्रेम की पराकाष्ठा है |
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबस एक बात सिनेमा वही हिट हुआ जिसमें एंडिंग हैप्पी थी
रिश्ते टूटने का अर्थ यह कदापि नहीं की, रिश्ते खत्म हो जाए .....
ReplyDeleteजब भी मिलने का मौका मिलता है यह पुनः जीवित हो उठते है
बहुत खूब ....अति मार्मिक शब्दों से सजी भावनात्मक कहानी