आज सुबह अनिकेत ने चाय पीना शुरू ही किया था कि तभी मोबाइल में आए हुए ई-मेल ने एक नया काम पकड़ा दिया, वो भी उसके ऑफिस का । अब ये क्या, आज ही जाना होगा, वो भी राँची । उसने झुंझला कर अपना फ़ोन बिस्तर पर बड़ी बेरूखी से पटका, और पेपर पढ़ने बैठ गया । अनिकेत ने अभी अपने बॉस को कोसना शुरू ही किया था और अचानक से उसकी आँखें ही चमक उठी, और भला क्यों न चमक उठती, आज कल रक्षन्दा भी तो रांची में ही है । अपने एविएटर चश्मे को न जाने कितनी बार पोछ चुके अनिकेत का वो पचास मिनट का हवाई सफर जैसे बीत ही नहीं रहा हो । वैसे रांची से अनिकेत का पुराना नाता रहा है अपनी पढ़ाई को ले कर, लेकिन इस बार की बेसब्री कुछ और ही बयाँ कर रही थी। उसे तो जल्दी थी, रक्षन्दा को सरप्राइज देने की। वैसे रक्षन्दा उसकी अभी भी बहुत ही अच्छी दोस्त है , और अनिकेत ने आज भी उसे ये एहसास ही नहीं होने दिया की उसे रक्षन्दा से प्यार है । इस अनकही प्यार की कहानी चली आ रही है, एक अरसे से।
रांची एयरपोर्ट से शहर की तरफ आते हुए, हिनू में एक मॉल खुल गया है , बाकी शहरों की तरह रांची भी बदल गया है । भैया, बस पाँच मिनट के लिए गाड़ी साइड में लगा दीजिये, मैं अभी आया, ये कह कर अनिकेत उस मॉल में चला गया, सोचा कि रक्षन्दा के लिए कुछ गिफ्ट ले लूँ , वैसे जरूरी नहीं था, लेकिन रक्षन्दा को अच्छा लगता। अनिकेत अभी अंदर पहुंचा ही था कि उसे सामने से रक्षन्दा अपने कुछ दोस्तों के साथ या शायद रिश्तेदार, जो भी थे, उनके साथ गुजरती दिखी । अनिकेत ने उसे फ़ोन मिलाया कि सरप्राइज यही दे दूँ, जितनी देर घंटी बजती रही अनिकेत की सांसें भी वक़्त के साथ तेज होती गयी , और रक्षन्दा के एक आवाज़ 'हेलो' सुन लेने के बाद तो वो दिन भर की बेचैनी और थकान भूल ही गया था। "हाँ रक्षन्दा, मैं रांची आ रहा हूँ तो सोचा की तुमसे मिल भी लूँगा, याद है हम आखिरी बार तुम्हारे दिल्ली वाले ऑफिस में ही मिले थे" । लेकिन रक्षन्दा ने बताया कि वो "रांची में नहीं है, कलकत्ता आयी हुई है", इतना सुनना था की अनिकेत को जैसे काटो तो खून नहीं और उसका एविएटर चश्मा अब वक़्त की जरुरत बन चुका था, बाहर से वो उस चश्मे में बहुत ही अच्छा दिख रहा था लेकिन अन्दर से उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था । रांची बदल चुका था, लोग भी और शायद रक्षन्दा भी । अनिकेत भी अपने नए सफर में आगे बढ़ चला था।
अनिकेत को इन सब के बावजूद भी कोई शिकायत नहीं है, उसने खुद को समझा लिया है कि वो अचानक से गया , रक्षन्दा की कोई मजबूरी रही होगी या कोई और बात होगी और पता नहीं क्या-क्या । आज कल के सम्बन्धों में क्रोध, द्वेष, घमंड और दोषारोपण जैसे भावों की अभिव्यक्ति की तो कोई जगह ही नहीं है , अनिकेत के दिल में, सिर्फ और सिर्फ प्यार था रक्षन्दा के लिए । आज भी बात होती है उसकी रक्षन्दा से, लेकिन इस बात का कोई जिक्र नहीं है , यही तो प्रेम की पराकाष्ठा है ।
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