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Showing posts from 2015

प्रेम की पराकाष्ठा ~ अधूरी बातें (1)

अनिकेत कभी भी अपने दिल की बात रक्षंदा से नहीं कर सका , रक्षंदा  से अनिकेत का रिश्ता  वाकई में प्रेम से परे था , कम से कम आज कल के प्रेम से तो परे  है ही ।   अनिकेत को रक्षंदा से प्यार तो पहली नज़र में  ही हो गया था , पर इज़हार कभी ना हो सका , होता भी कैसे , जब अनिकेत ने पहली  बार हिम्मत जुटाई तो कंप्यूटर लैब में रक्षंदा अपनी मण्डली को अपने प्यार की एक शानदार तस्वीर से रूबरू  करवा रही थी , तस्वीर की वो लम्बी नीली कार में बैठे उस शख़्स ने , अनिकेत को लम्बी दूरी बनाने के लिए मजबूर दिया । हालाँकि कॉलेज के बाद भी मौके आए कि वो कुछ कहे , लेकिन कभी वक़्त गलत था, तो कभी हालात ।  उनकी शानदार दोस्ती की कहानियाँ बहुत हैं , अनिकेत चाहता तो बहुत कुछ कर सकता था अपने लिए , लेकिन उसने सिर्फ रक्षंदा की ख़ुशी के लिए ही सोचा और हमेशा उसकी नज़र में दोस्त बन कर रह गया । वो कॉलेज की मस्तियों , कॉफी के प्यालों और रक्षंदा की अनमोल दोस्ती में ही खुश रहने लगा ।  उसने कभी भी एहसास नहीं होने दिया कि उसे प्यार भी है ।  रक्...

जरा भी

इन दूरियों  का जरा भी , इल्म ना मुझे , उन बातों का जरा भी , अफ़सोस ना मुझे, तेरे वादों पे  जरा भी , भरोसा ना मुझे , तुझे आज़माने की जरा भी , हिम्मत ना  मुझे , तेरे किसी पैग़ाम  का जरा भी , इंतज़ार ना मुझे , मेरी ख़ामोशी के खात्मे  का ज़रा भी , तूँ ना कर अब इंतज़ार , अपने रास्ते पे जरा भी , मेरा,  तूँ ना कर अब इंतज़ार , पूछ लिए हैं सवाल , मैंने  खुदा से अपने , इस दोज़ख में , कि कितने हैं खुदा इस जमीं पर , मेरे सवालों से पूरी खामोशी में है , मेरा  भी खुदा , और तेरा भी खुदा |

फिर एक बार

खामोश आँखों ने उसकी, बढ़ा दी मेरे मन की हलचल , उड़ती जुल्फों ने उसकी, थाम ली मेरे दिल की धड़कन, हर एक बात ने उसकी , कह दी  मेरे मन की  बात , न कुछ था ख़ास उसमें , फिर भी थी कुछ खास बात , ना  उसने कुछ  कहा,  और ना  ही मैंने कुछ  कहा , पर  वक़्त की खामोशियों ने, कह दी थी सारी बात , अपनी चुप्पी से वो, हमराज़ बना चली गयी, न लौटने का वादा की , बिना  मुड़े चली गयी , मैं भी ना रुका , ना  किया उसका इंतज़ार, निकल पड़ा तलाश में किसी की, फिर एक बार। 

यादों की किताब

यादों की किताब ले के मैं , बैठा रहा यूँ  ही रात भर, सूखे पड़े  पीले पन्नों में , निकला गुलाब सूखा फिर , गीली  सी हुई कहानी वो, निकले  जो आँसू  आज फिर , बैठा रहा फिर से  यूँ ही मैं , पढ़ी ना किताब आज फिर , डरता हूँ ऐसी  यादों से , हो न जाए  आज प्यार फिर , यादों की किताब ले के मैं , बैठा रहा यूँ  ही रात भर । 

लगता है

यूँ ही चल साथ , ऐ जिन्दगी , धोखे में  रहूँगा , कि  जिन्दा हूँ मैं । गर जो मेरा साथ देती रहें मेरी साँसे , तो लगता रहेगा, कि  जिन्दा हूँ  मैं । छीन लेता हूँ , समन्दर से सीपें भी , लगता है , छिन गया हो कोई  मोती । यूँ ही कश पे कश लगाता  हूँ , लगता है, कश्मकश में है जिन्दगी । तरेर देता हूँ , सूरज को आज कल , लगता है , अब दुश्मन बचा न कोई । जी लेता हूँ , छिपा के ख़्वाब कहीं  , लगता है , जिन्दा हूँ मैं आज कहीं ।

आखिरी बार भी

सर्द रात में बाहर बैठा, मैं एक अकेला, गर्म चाय के ठन्डे प्याले, याद दिलाते ठन्डे रिश्ते, कभी गर्म थे,  जो ऐसे ही, कहीं खो गए गए जो यूँ ही, लिखता था जिस स्याही से, वो प्यार भरे खत, उन रातों को, सूख गयी  स्याही को, आज फिर पिघलाया हूँ, पत्थर जैसे दिल को,  मोम सा फिर पिघलाया हूँ , आज लिख रहा हूँ , एक आख़िरी पाती , जिसे पढ़ लेगा  मेरा वो साथी , समझ सकेगा उस रिश्ते को , उन बातों को , पर समय न होगा , कुछ कहने को , कुछ सुनने को दिल स्याह हो गया होगा आँखों की दवात सूख गयी होगी , लेकिन मुस्कराता मिलूंगा, तब भी , तुम्हारे लिए ही , आखिरी बार  भी । 

आँखों की बात

आँखों की बात  ओस जैसी नमी देखी है ,फिर से आज भी उदासी भी वही देखी है, फिर से आज भी छिपा लिया हो  पलकों में किसी बात को, लबों  की आहट में डरा दिया हो, जैसे,  किसी बात को नहीं मालूम करना है मुझे, उस बात को सजा दे दो किसी को , बख़्श  दो उस आँख को वो थक सी हैं गयीं , अब सुन लो उनकी बात को, ये आँखें  अब नहीं बदलेंगी , माना है 'यथार्थ ' मगर चश्मे बदलने की बात को ही  मान लो ।