यूँ ही चल साथ , ऐ जिन्दगी ,
धोखे में रहूँगा , कि जिन्दा हूँ मैं ।
गर जो मेरा साथ देती रहें मेरी साँसे ,
तो लगता रहेगा, कि जिन्दा हूँ मैं ।
छीन लेता हूँ , समन्दर से सीपें भी ,
लगता है , छिन गया हो कोई मोती ।
यूँ ही कश पे कश लगाता हूँ ,
लगता है, कश्मकश में है जिन्दगी ।
तरेर देता हूँ , सूरज को आज कल ,
लगता है , अब दुश्मन बचा न कोई ।
जी लेता हूँ , छिपा के ख़्वाब कहीं ,
लगता है , जिन्दा हूँ मैं आज कहीं ।
धोखे में रहूँगा , कि जिन्दा हूँ मैं ।
गर जो मेरा साथ देती रहें मेरी साँसे ,
तो लगता रहेगा, कि जिन्दा हूँ मैं ।
छीन लेता हूँ , समन्दर से सीपें भी ,
लगता है , छिन गया हो कोई मोती ।
यूँ ही कश पे कश लगाता हूँ ,
लगता है, कश्मकश में है जिन्दगी ।
तरेर देता हूँ , सूरज को आज कल ,
लगता है , अब दुश्मन बचा न कोई ।
जी लेता हूँ , छिपा के ख़्वाब कहीं ,
लगता है , जिन्दा हूँ मैं आज कहीं ।
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