Skip to main content

Posts

Showing posts from 2017

प्रेम की पराकाष्ठा - समाहित

आज दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर  इंतज़ार कर रहे अनिकेत की नज़र सामने के प्लेटफार्म पर पड़ी और यकीन नहीं हुआ आँखों को, उसके सामने रक्षंदा खड़ी है , प्लेटफार्म की सीढ़ियों को चढ़ते- उतरते, हाँफते- दौड़ते वो उस प्लेटफार्म पर गया और रुक गया | पहले उसने रक्षंदा को निहारा और फिर आवाज़  लगायी "रक्षंदा", दोनों  ने  एक दूसरे को देखा और हँसते हुए बढे, लगा कि गले मिलने जा रहे हों , लेकिन दोनों के कदम ठिठक से गए, रक्षंदा के साथ उसके कुछ दोस्त भी थे,  बस हाथ मिलाना , थोड़ी ज्यादा  देर तक हाथ मिलाना चलता रहा |  वैसे गले मिलना  समस्या नहीं है वो भी दिल्ली में, लेकिन अनिकेत छोटे शहर से तो बाहर आ गया , लेकिन छोटा शहर उससे बाहर नहीं गया , फिलहाल  समस्या कुछ ही चीज़ों तक सीमित हो चुकी है जैसे कि गले मिलना , बात की शुरुआत करना , ज्यादा करीब बैठना और अनिकेत की ये समस्या भी सिर्फ लड़कियों तक सीमित है | खैर जो भी हो फिलहाल समस्या ये है कि अनिकेत  ने रक्षंदा से झूठ बोल दिया है कि उसकी ट्रेन बहुत ज्यादा लेट है  और रक्षंदा की 'राजधानी एक्सप्रेस ' के बाद वो ट्रे...

प्रेम की पराकाष्ठा ~ रिश्ता

आज कल आप किसी से ज्यादा दिन न मिले-जुले, न ही अक्सर बातें करें, कुल मिलाकर ये कहूँ कि आज के ज़माने में  "टच" में या फिर "कनेक्ट" न रहें तो आप बड़े व्यस्त, स्वार्थी, घमंडी और न जाने क्या-क्या बन जाते हैं, और अगर इनमे से कुछ नहीं बन पाए तो सामने वाला आपको "बड़ा आदमी" तो बना ही देता है,  फिर रिश्तों में वही नाराज़गी, रूठने-मनाने, खिदमत और जद्दोजहद का एक दौर शुरू हो जाता है | रिश्तों का कोई सामाजिक स्तर पर नाम हो या न हो, लेकिन अनिकेत और रक्षंदा का रिश्ता इन सब ताने-बाने से अलग ही था, है और रहेगा | दोनों ही अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त हैं, बातें कभी-कभार हो जाती हैं, और मुलाकात हुए तो बरसों भी बीत जाते हैं, लेकिन कोई शिकवा या शिकायत नहीं होती है | अनिकेत का तो चलो मान भी लें कि उसे रक्षंदा से प्यार है , लेकिन रक्षंदा को तो नहीं है शायद , लेकिन इसके बावजूद भी, रक्षंदा ने कभी भी काफी अरसे पर होने वाली अनिकेत संग बात-चीत या मुलाकातों को लेकर कभी कोई जुमलेबाजी नहीं की | अनिकेत को तो सभी जानते हैं लेकिन रक्षंदा के चरित्र की इस गहराई को तो कोई नहीं जानता, शायद प्रेम तो...

प्रेम की पराकाष्ठा ~ अधूरी बातें (2)

कभी रात के अँधेरे में आप सड़क पर अकेले फूट-फूट कर रोये हैं, वो भी ज़माने बाद | आपको किसी की भी परवाह नहीं होगी उस सन्नाटे में, न कोई आँसू देख सकेगा और न ही सिसकियों की आवाज़ सुन रहा होगा | और कभी बेवजह रोये हैं क्या ? आपको पता ही नहीं चल रहा हो कि आप क्यों रो रहे हैं, समझ ही नहीं पाना कि ये आँसू ख़ुशी के हैं या ग़म के | आज कुछ ऐसा ही अनिकेत के साथ हो रहा था, रात के उस सन्नाटे में, रक्षंदा से मिलने के बाद वो इतनी तेजी से भागा जैसे काटो तो खून नहीं | सबसे ज्यादा कष्ट, सबसे ज्यादा वेदना तभी होती है जब कोई अपना छूटता है | अलविदा कहने के लिए भी आँखों को ही बोलना पड़ता है | और आँखों को क्यों न बोलना पड़े, इंसान के जज्बातों को पूरी सच्चाई से आँखें ही बयां कर सकती हैं | आज कुछ ऐसा ही मंजर था अनिकेत की आँखों में, दोनों, रक्षंदा और अनिकेत  ने बातें ज्यादा तो शिष्टाचार की ही करीं, लेकिन ज़ज्बात बयां करने के लिए तो अनिकेत की डबडबायी आँखें की काफी थी, वैसे रक्षंदा को आज फिर से कुछ भी पता नहीं चल पाया क्यूंकि अनिकेत का प्यार कोई आज कल का परवान चढ़ता प्यार नहीं है बल्कि उसका प्यार ही उसके प्रेम की पराक...

प्रेम की पराकाष्ठा ~ सफर

आज सुबह अनिकेत ने चाय पीना शुरू ही किया था कि तभी मोबाइल में आए  हुए ई-मेल ने एक नया काम पकड़ा दिया, वो भी उसके ऑफिस का । अब ये क्या, आज ही जाना होगा,  वो भी राँची । उसने झुंझला कर अपना फ़ोन बिस्तर पर बड़ी बेरूखी से पटका, और पेपर पढ़ने बैठ गया । अनिकेत ने अभी अपने बॉस को कोसना शुरू ही किया था और  अचानक से उसकी आँखें ही चमक उठी, और भला क्यों न चमक उठती, आज कल रक्षन्दा  भी तो रांची में ही है । अपने एविएटर चश्मे को न जाने कितनी बार पोछ चुके अनिकेत का वो पचास मिनट का हवाई सफर जैसे बीत ही नहीं  रहा हो । वैसे रांची से अनिकेत का पुराना नाता रहा है अपनी पढ़ाई को ले कर, लेकिन इस बार की बेसब्री कुछ और ही बयाँ कर रही थी। उसे तो जल्दी थी, रक्षन्दा को सरप्राइज देने की। वैसे रक्षन्दा उसकी अभी भी बहुत ही अच्छी दोस्त है , और अनिकेत ने आज भी उसे ये एहसास ही नहीं होने दिया की उसे  रक्षन्दा से प्यार है । इस अनकही प्यार की कहानी चली आ रही है, एक अरसे से।  रांची एयरपोर्ट से शहर की तरफ आते हुए, हिनू में एक मॉल खुल गया है , बाकी शहरों की तरह रांची भी बदल...