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Showing posts from November, 2012

सफ़र

बड़ी दूर निकल आये हम, मंजिल जो दूर थी, वक़्त का साथ भी न रहा "यथार्थ", वो बड़ा कमबख्त जमाना था, तेरा साथ तो नसीब में भी न था, पर तेरी याद़ो से बस एक ही बात थी, मेरी मंजिल मेरी राहें,चाहे जैसी भी रही हो, मेरा सफ़र एक सुहाना था... . मेरा सफ़र एक सुहाना था......

परवाना

बड़ी तल्खी थी ज़माने के अल्फाजो में किसी दिन, जल गया था एक परवाना किसी गैर की आग में, शमां भी बदनसीब थी, जो जलती रही और जलाती रही न जाने कितने परवानो  को, यूँ ही एक परवाना कहीं और उड़ चला, जलती शमां से दूर, बहुत दूर, पूछने पे बोला, ऐ शमां तू ना बुझना अभी, मै आता हूँ  तेरे पास, इस जमाने को जलाने के बाद, इस जमाने को जलाने के बाद ।