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Showing posts from January, 2015

यादों की किताब

यादों की किताब ले के मैं , बैठा रहा यूँ  ही रात भर, सूखे पड़े  पीले पन्नों में , निकला गुलाब सूखा फिर , गीली  सी हुई कहानी वो, निकले  जो आँसू  आज फिर , बैठा रहा फिर से  यूँ ही मैं , पढ़ी ना किताब आज फिर , डरता हूँ ऐसी  यादों से , हो न जाए  आज प्यार फिर , यादों की किताब ले के मैं , बैठा रहा यूँ  ही रात भर । 

लगता है

यूँ ही चल साथ , ऐ जिन्दगी , धोखे में  रहूँगा , कि  जिन्दा हूँ मैं । गर जो मेरा साथ देती रहें मेरी साँसे , तो लगता रहेगा, कि  जिन्दा हूँ  मैं । छीन लेता हूँ , समन्दर से सीपें भी , लगता है , छिन गया हो कोई  मोती । यूँ ही कश पे कश लगाता  हूँ , लगता है, कश्मकश में है जिन्दगी । तरेर देता हूँ , सूरज को आज कल , लगता है , अब दुश्मन बचा न कोई । जी लेता हूँ , छिपा के ख़्वाब कहीं  , लगता है , जिन्दा हूँ मैं आज कहीं ।

आखिरी बार भी

सर्द रात में बाहर बैठा, मैं एक अकेला, गर्म चाय के ठन्डे प्याले, याद दिलाते ठन्डे रिश्ते, कभी गर्म थे,  जो ऐसे ही, कहीं खो गए गए जो यूँ ही, लिखता था जिस स्याही से, वो प्यार भरे खत, उन रातों को, सूख गयी  स्याही को, आज फिर पिघलाया हूँ, पत्थर जैसे दिल को,  मोम सा फिर पिघलाया हूँ , आज लिख रहा हूँ , एक आख़िरी पाती , जिसे पढ़ लेगा  मेरा वो साथी , समझ सकेगा उस रिश्ते को , उन बातों को , पर समय न होगा , कुछ कहने को , कुछ सुनने को दिल स्याह हो गया होगा आँखों की दवात सूख गयी होगी , लेकिन मुस्कराता मिलूंगा, तब भी , तुम्हारे लिए ही , आखिरी बार  भी । 

आँखों की बात

आँखों की बात  ओस जैसी नमी देखी है ,फिर से आज भी उदासी भी वही देखी है, फिर से आज भी छिपा लिया हो  पलकों में किसी बात को, लबों  की आहट में डरा दिया हो, जैसे,  किसी बात को नहीं मालूम करना है मुझे, उस बात को सजा दे दो किसी को , बख़्श  दो उस आँख को वो थक सी हैं गयीं , अब सुन लो उनकी बात को, ये आँखें  अब नहीं बदलेंगी , माना है 'यथार्थ ' मगर चश्मे बदलने की बात को ही  मान लो ।