Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2017

प्रेम की पराकाष्ठा - समाहित

आज दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर  इंतज़ार कर रहे अनिकेत की नज़र सामने के प्लेटफार्म पर पड़ी और यकीन नहीं हुआ आँखों को, उसके सामने रक्षंदा खड़ी है , प्लेटफार्म की सीढ़ियों को चढ़ते- उतरते, हाँफते- दौड़ते वो उस प्लेटफार्म पर गया और रुक गया | पहले उसने रक्षंदा को निहारा और फिर आवाज़  लगायी "रक्षंदा", दोनों  ने  एक दूसरे को देखा और हँसते हुए बढे, लगा कि गले मिलने जा रहे हों , लेकिन दोनों के कदम ठिठक से गए, रक्षंदा के साथ उसके कुछ दोस्त भी थे,  बस हाथ मिलाना , थोड़ी ज्यादा  देर तक हाथ मिलाना चलता रहा |  वैसे गले मिलना  समस्या नहीं है वो भी दिल्ली में, लेकिन अनिकेत छोटे शहर से तो बाहर आ गया , लेकिन छोटा शहर उससे बाहर नहीं गया , फिलहाल  समस्या कुछ ही चीज़ों तक सीमित हो चुकी है जैसे कि गले मिलना , बात की शुरुआत करना , ज्यादा करीब बैठना और अनिकेत की ये समस्या भी सिर्फ लड़कियों तक सीमित है | खैर जो भी हो फिलहाल समस्या ये है कि अनिकेत  ने रक्षंदा से झूठ बोल दिया है कि उसकी ट्रेन बहुत ज्यादा लेट है  और रक्षंदा की 'राजधानी एक्सप्रेस ' के बाद वो ट्रे...